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तुम लौट आओगे, शायद!

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  रेलवे स्टेशन, बस अड्डा, एयरपोर्ट वग़ैरा रहा होगा चश्मदीद गवाह, बिछड़ने की घड़ी का, हालाँकि वास्तव में अलग होने से पहले, कई दिन तक दो लोगों ने लगातार महसूस किया होगा, बिछड़ना| विरह, वियोग, हिज्र की तीव्रता को अपने-अपने हिसाब से भोगा होगा जैसे मैं आजतक भोग रही हूँ|  तुम्हारा जाना कोई आकस्मिक घटना नहीं थी पर मेरे जीवन की वह घटना थी जिसको मैंने कभी नहीं सोचा था| (कुछ घटनायें यथार्थ के एकदम क़रीब होती है पर हम उसे अपनी कल्पना में भी अपने आसपास नहीं भटकने देते है|) नियति ने तय किया होगा तुम्हारा जाना लेकिन मैं नियति में विश्वास नहीं रखती थी| मुझे लगता था चीज़ें हमारे अनुसार होती है हमारे भले के लिए| पर तुम्हारे जाने में मेरा क्या भला रहा होगा? आज तुम्हें गए हुए सालों हो चुकें हैं पर तुम्हारी जाने की स्मृति इतनी ताज़ी हैं कि लगता है कल ही इस स्मृति ने जन्म लिया था| (समय के साथ हम बूढ़े हो जाते है लेकिन कुछ स्मृतियाँ समय के साथ और जवान हो जाती है|) तुम्हारे जाने के अतीत ने मेरे वर्तमान का आज भी हाथ पकड़ रखा है जैसे हम दोनों ने उस दिन एक दूसरे का हाथ पकड़ा था, विदा लेने से ठीक पहले तक| वह दिन हमारे कुछ