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Showing posts from July, 2024

"व्यस्तता का साथ"

जब किसी भाव या अतीत से हमें भागना होता हैं तब व्यस्तता का कवच पहनना सबसे आसान लगता हैं|  (भागना इंसान की पहली प्रवृत्ति हैं|) व्यस्तता का चुनाव करने में कितनी बार हताश होना पड़ता हैं लेकिन एक बार व्यस्तता का हाथ थाम लो तो हताश होने या हताशा के बारे में विचार करने का समय नहीं मिलता| हताशा का जन्म अपेक्षाओं के कारण होता हैं और इंसान की मृत्यु तक इंसान को हर तरह से ये सताती हैं| (इंसान बंद आँखों से ज़्यादा सपने देखता हैं और खुली आँखों से देखे गए सपनों को भगवान भरोसे छोड़कर बैठता है|) मैंने लोगों का हाथ थामा और कुछ समय के उपरान्त लोगों ने हाथ झटक कर दूर जाना तय किया, मैं वहीं उनकी पकड़ की स्मृति के साथ देखती रही उनका ओझल होना और आँख गड़ा कर बैठी रही, उनके वापस लौटने की उम्मीद में| (उम्मीद इंसान को धीमे-धीमे मारती हैं|) मैं कुछ सपनों के पीछे भागती रही मानो जीवन में केवल एक लक्ष्य हो, पीछा करना| सपनों में जीना चुना और सपनों को वास्तविकता में लाने की पूरी कोशिश की, पर सपनों ने कल्पना में रहना चुना| फिर जीवन में आगे बढ़ने का सोचा पर अतीत की मज़बूत पकड़ में जकड़ी रही|  रात को सोना और सुबह उठना|