जब किसी भाव या अतीत से हमें भागना होता हैं तब व्यस्तता का कवच पहनना सबसे आसान लगता है|
(भागना इंसान की पहली प्रवृत्ति है|)
व्यस्तता का चुनाव करने में कितनी बार हताश होना पड़ता है लेकिन एक बार व्यस्तता का हाथ थाम लो तो हताश होने या हताशा के बारे में विचार करने का समय नहीं मिलता| हताशा का जन्म अपेक्षाओं के कारण होता है और इंसान की मृत्यु तक इंसान को हर तरह से ये सताती है|
(इंसान बंद आँखों से ज़्यादा सपने देखता है और खुली आँखों से देखे गए सपनों को भगवान भरोसे छोड़कर बैठता है|)
मैंने लोगों का हाथ थामा और कुछ समय के उपरान्त लोगों ने हाथ झटक कर दूर जाना तय किया, मैं वहीं उनकी पकड़ की स्मृति के साथ देखती रही उनका ओझल होना और आँख गड़ा कर बैठी रही, उनके वापस लौटने की उम्मीद में|
(उम्मीद इंसान को धीमे-धीमे मारती है|)
मैं कुछ सपनों के पीछे भागती रही मानो जीवन में केवल एक लक्ष्य हो, पीछा करना| सपनों में जीना चुना और सपनों को वास्तविकता में लाने की पूरी कोशिश की, पर सपनों ने कल्पना में रहना चुना| फिर जीवन में आगे बढ़ने का सोचा पर अतीत की मज़बूत पकड़ में जकड़ी रही|
रात को सोना और सुबह उठना| हताशा के बादल को लगातार सर पर मंडराते हुए पाया| लेकिन एक सुबह, कुछ हुआ, कुछ अलग-सा, होश आया, पहली बार आँख पूरी खुली और चुना, व्यस्तता का साथ|
(व्यस्तता जीवित व्यक्ति के लिए मोक्ष है|)
~आमना
Exactly व्यस्तता जीवित व्यक्ति के लिए मोक्ष हैं| lekin ye baat Hume bahut kuch experience krne k bd hi smjh aati h
ReplyDeleteJi,bikul sahi baat hai
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