पिता से संवाद गिनती के रहे। डर का दायरा लम्बा-चौड़ा रहा। सवालों से पिता को ख़ूब परेशान किया। जब सवाल का जवाब ख़ुद ढूँढना शुरू किया तो पिता की रोक-टोक बीच में आने लगी। पिता भयानक लगने शुरू हो गए। पिता खटकने लगे।
पिता ने उँगली पकड़ कर चलना सिखाया और लड़खड़ाने पर थाम लिया। घर से बाहर की दुनिया की पहली झलक भी पिता ने दिखाई। मेले का सबसे बड़ा झूला भी झुलाया; खेत घुमाया, शहर घुमाया, रेल की यात्रा कराई। फिर दुनिया के कुएं में अकेले धकेल दिया। पिता उस गांव जैसे थे जहाँ से एक सपनों की पगडंडी शहर की सड़क से जा मिलती थी। मुझे भी वह पगडंडी भा गयी। अच्छे जीवन की महत्वाकांक्षा ने पहुँचा दिया, शहर। पिता से दूर, पिता के ऊल-जलूल उसूलों से दूर।
शहर की दुनिया, गांव में बसी पिता की दुनिया को दर-किनार करने लगी। समय बीता, और इतना बीत गया कि पिता पुराने जैसे नहीं रहे।
एक लम्बे-चौड़े व्यक्ति का शरीर ढल गया। चाल में लड़खड़ाना जुड़ गया। आवाज़ धीमी हो गयी। दुनिया के सारे कोने की समझ रखने वाला व्यक्ति, अब एक कोने में सिमट गया। पिता इन दिनों बच्चे जैसे हो गए। अपने कामों के लिए दूसरे पर निर्भर। पूरे जीवन आत्म-निर्भर रहना वाला व्यक्ति , काफ़्का की मेटामॉरफोसिस का मुख्य पात्र बन गया। वह हर दिन थोड़ा- थोड़ा हमसे दूर जाने लगे। चुप्पी ने उन्हें अपने जाल में जकड़ लिया। कितने पतझड़ आये और चले गए; यह बरगद टिका रहा लेकिन पिछले कुछ वसंत से, मैं इस बरगद को धीरे-धीरे सूखते हुए देख रही हूँ, ज़र्द पत्ते और सिकुड़ती हुई डालियाँ। एक उदासी लगातार महक रही है इस बरगद के इर्द-गिर्द।
मुझे लगता था कि मेरे लड़खड़ाते संवाद ,पिता की लड़खड़ाती चाल को सहारा देंगे। वैसे मैं पूछ भी क्या सकती थी उस व्यक्ति से जिसने हमेशा स्वयं सवाल किया हो। हमेशा एक से सवाल और मेरे एक से जवाब। चंद सेकंड के संवाद जिसमें दिनों का निचोड़ रहता था। पिता से केवल इतना सा संवाद रहा। पिता इतनी देर बाद समझ में आये कि तब केवल मेरे पास काश..... बचा था।
पिता के ढलते शरीर की स्मृतियाँ मेरी आत्मा को आजतक निढाल करती हैं। मेरी चाल-ढाल में पिता उजागर होते हैं। मैं अक्सर पिता के उन गिनती के संवादों के सहारे, ख़ूब संवाद करती हूँ।
~ आमना
You are really a blessed One! And so are the ones who have you around themselves!!
ReplyDeleteit touched so so deep! Let me thank you for writing this:-)
Thank you so much. It means a lot. Thank you for reading it.
Deleteहमेशा की तरह बेहद अलग और बेहद उम्दा। मगर इस बार आंखों में आंसू। खूबसूरत। खूब बढ़ो आमना बेटा, खूब सुंदर लिखती हो, खूब सुंदर लिखती रहो। 🌼❤️
ReplyDeleteShukriya Bhaiya ....aapka aashirwaad bana rahe humesha.
Deleteआसान अल्फ़ाज़ में गहरे जज़्बात बयाँ हुए।
ReplyDelete‘पिता’ के बारे में सोचने समझने और लिखने का बहुत शुक्रिया आमना जी।
Shukriya.....waqt nikaal kar padhne ke liye
Deleteआमना आपके लेख ने दिल की गहराइयों को छू लिया। भावनाओं को इतनी खूबसूरती से शब्दों में पिरोया गया है कि हर पंक्ति अपनी कहानी कहती है। सच में, ऐसी लिखावट बहुत कम देखने को मिलती है।❤️
ReplyDeleteहर बार की तरह बेहतरीन 🤗🙌