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"अकेलेपन से एकांत की ओर"



एक वक़्त बाद अकेलापन इतना अकेला महसूस होने लगता है मानो वहाँ हमारा होना भी एक भ्रम जैसा हो| ख़ुद से बात करने के लिए कुछ नहीं बचता| कुछ नया करने से पहले ही मन ऊब जाता है| अकेलापन चुभना शुरू कर देता है| हम खोजने लगते है एक ऐसी जगह जहाँ से सब कुछ इतना भरा हो कि हमें अकेलापन का पता ही न चले| अंततः हम व्यस्तता का हाथ थाम लेते है|


(अकेलापन तब खलने लगता है जब हम अकेले होने का मूल्यांकन करना शुरू कर देते है|)


फ़िलहाल मैं छत के एक कोने में बैठकर अपने आसपास की दुनिया को देख रहीं हूँ| कितनी अस्थिर है दुनिया| लगातार भाग रही है भीड़ से अकेलेपन की ओर और अकेलेपन से भीड़ की तरफ़| कुछ को कहीं-न-कहीं पहुँचने की जल्दी है और कुछ को कहीं लौटने में अभी देरी है| हालाँकि मुझे इस पल में ठहरे रहने का सुख, दूसरों के दुःखों को महसूस करके नहीं गवाना है| 


आज पहाड़ काफ़ी साफ़ दिख रहे है| पंछी आसमान में लम्बी और ऊँची उड़ान भर रहे हैं| कितना सुख मिलता है प्रकृति के आश्चर्य से बार-बार आश्चर्यचकित होने में| एक ठंडी हवा का झोंका जैसे ही बदन छूता है वैसे ही एक सिहरन भीतर दौड़ लगाने लग जाती है| मैं भूल गयी थी कि अतीत के पन्ने पढ़कर ही वर्तमान में लौटा जा सकता है और तब ही भविष्य के पन्ने लिखना शुरू कर सकते है| 


(आसपास की घटनायें हमें सताती हुई चीज़ों से निजात दिलाने के रास्ते ख़ुद-ब-ख़ुद निकाल लेती है|)


मैंने शायद अकेले रहना इसीलिए चुना था क्यूंकि अकेले आदमी को उसके अतीत या उसके बारे में कोई बात नहीं करने वाला होगा| संवाद ख़ुद के बारे में करना होता है तो मैं ख़ुद को हमेशा ख़ाली पाती हूँ| गांव की उस नहर की तरह जो बड़े लम्बे वक़्त से सूख चुकी है और बरसात होने के कुछ समय बाद वह अपना पुराना रूप धारण कर लेती है| 


(अकेले रहते हुए, सबसे ज़्यादा संवाद ख़ुद से ही होता है पर इसकी भनक अकेला व्यक्ति किसी को नहीं देना चाहता,ख़ुद को भी नहीं|)


हम रोज़मर्रा के काम में ख़ुद को इतना व्यस्त कर लेते है कि हमारी याददाश्त भूल जाती है कि हमारा कोई अतीत भी था| फिर एक दिन हम इतने ख़ाली हो जाते है कि चारों तरफ़ जो भी घटता है वह हमारी याददाश्त को कुरेदने लगता है और बार-बार हमें अतीत की तरफ़ धकेलना शुरू कर देता है|


इस बार सिहरन ने मुझे अतीत में ऐसा धकेला कि मुझे अतीत का चक्कर लगाना ही पड़ा| अतीत से बाहर निकलते हुए मैंने अतीत को स्वीकार कर लिया| अपने आप को स्वीकार कर लिया| अपनी ग़लतियों को इस बार नज़रअंदाज़ करने में असफल रही शायद इसलिए मैं वर्तमान में वापस लौट पायी| दुनिया बहुत बड़ी है| शुरू करना चाहिए फिर से जीना| अकेलेपन से एकांत तक का सफर तय करना चाहिए|


~आमना 


Comments

  1. बहुत सुंदर एहसास...ये जिंदगी की तंग एवम अंधेरी गलियों से गुजरने के बाद की छाया हैं....वह आदमी सबसे कमजोर तब होता है, जब वह भीड़ में होता है, और सबसे मजबूत जब वह अकेला एकांत में होता है।

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    1. kitni sacchi aur khubsurat baat

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  2. अकेलापन इंसान को इंसान की खुद की मौजूदगी का एहसास दिलाता है और एकान्त इंसान को सुकून देता है दरअसल हम सब अकेले पन से बचते है और जो अकेला होता है वह लोगो से बचते है यही कारण अकेलेपन को एकांत की ओर ले जाता है। असल मज़ा तो एकान्त का है जो अकेलापन भी दूर कर देता है। लिखने के लिए मैं इस पर तमाम बातें लिखदू पर मैं खुद अकेले पन और एकान्त से बचते हुए दूर भागता हू

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  3. खूब सुंदर आपने लिखा , यूंही लिखते रहिए, ❤️🌺

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    1. ji shukriya....koshish jaari rahegi

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  4. स्वीकार करना ही सत्य जानने की सीढ़ी है 🙏🏻 बहुच अच्छा लेख दीदी 🙏🏻

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  5. Lot's of love ❤️🫂

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  6. अकेले में ही लिख रहा हु , शायद एकांत तक आ रहा हु, इस ब्लॉग में खुद को पा रहा हूं

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    1. Maine bhi kahin se niklne ke likha tha.....aur aap par bhi iska asar pada, bahut Khushi hui...Khush Rahein aur Aabaad rahein

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  7. This comment has been removed by the author.

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  8. फिलहाल मैं बहुत अकेला महसूस कर रहा हु,घंटों लाइब्रेरी में अकेला बैठे सोचता रह जाता हु, कोई दोस्त नहीं है मेरा, न किसी से कोई बात होती, सैंड रील, सैंड सॉन्ग, मुझे अंदर से अकेले कर देती है, पहले था कोई दोस्त लेकिन सब एक वक्त के बाद अकेला छोड़ कर चले जाते है, अब मैं किसी से दोस्ती नहीं करता क्यू कि हर रिश्ता एक तरफा होता है मैं बहुत मिस करता हु, मुझे बहुत अकेला लगता है मैं बहुत रोता हूं

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