जिस तरह से मृत्यु नहीं टाली जा सकती उस तरह से एक उम्र के बाद घर को छोड़ना नहीं टाला जा सकता है| और तब हमें केवल घर का पता याद रह जाता है| जीवन में हर तरह की यात्रा घर से प्रारम्भ होती है लेकिन दुर्भाग्य से किसी भी यात्रा का अंत घर पर नहीं होता है| जीवन गतिशील होता है और इसके विपरीत होता है ठहराव से भरपूर घर| घर उद्गम है जिसके पास लौटना असंभव है|
(असंभव में एक तरह का शांत दिलासा है|)
लम्बे समय तक घर मेरी चारों दिशाओं में रहा फिर समय बीत गया, अब किसी दिशा में मुझे घर नहीं मिलता| घर अब मकान में तब्दील हो चुका है फिर भी मैं कभी-कभार उस मकान में घर की गंध सूँघने जाती हूँ लेकिन चौखट लाँघते ही मुझे स्थिर मकान में दौड़ता घर दिखने लगता है| वह दौड़ता घर मुझे कुचल कर मकान की चौखट लाँघ कर कहीं खो जाता है| मैं घर को पकड़ने नहीं दौड़ती क्यूंकि अब दौड़ने का साहस मेरे भीतर नहीं बचा है|
आँगन में लगी तुलसी अब सूख चुकी है पर मेरी घर की खोज अभी भी वैसी ही है जैसे तुलसी के अवशेष की अपनी जगह| पिता की चारपाई के पाए अब कमज़ोर हो चुके है जैसे वह अपने आख़िरी दिनों में हो गए थे| माँ की अलमारी में दीमक लग चुका है जिस तरह से माँ को किसी बात ने अंदर ही अंदर नष्ट कर दिया था| छत में काई जम गयी है जैसे उस समय मेरे मन में जम गयी थी|
समय रहते हुए, हमें समय क्यों थप्पड़ नहीं मारता है? समय बीत जाने के बाद, हमें होश क्यों आता है? फिर बचा समय, हमें ग्लानि के साथ क्यों गुज़ारना पड़ता है?
मैं इस मकान में घर की तरह रहने की कोशिश करती हूँ जब मुझे मेरा शहर का मकान काट खाने को दौड़ने लगता है| उस मकान से इस मकान की दूरी को तकनीक ने बहुत कम कर दिया है लेकिन जब यह मकान घर हुआ करता था तब भी संभव था यहाँ आना| पर मैं उस समय असंभव चीज़ें करने में जुटी रहती थी|
(हम घर एक पल में छोड़ते है लेकिन घर हमें हर पल याद दिलाता है कि वह छूट चुका है|)
मैं इस वक़्त अपने शहर के मकान की बालकनी में बैठे हुए सामने वाले घर की ख़ुशकिस्मती से जल रही हूँ और उस घर को मकान में तब्दील न होने की दुआ कर रही हूँ| पीछे छूटा मेरा घर, मेरी बदकिस्मती पर ज़ोर-ज़ोर से ठहाके लगा रहा है|
काफी ज्यादा सटीक और संवेदनशील।
ReplyDelete❤️❤️🫂
ReplyDeleteSensitive and emotional.. 🤗
ReplyDeleteबहुत अच्छी पकड़ हैं जस्बात पर
ReplyDeleteबहुत प्यारा लिखा हैं ! 🍁🌻
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