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Showing posts from August, 2024

'साया और काले साये'

   सिर पर अतीत का भार दाब लगा रहा हैं और सिर के ठीक ऊपर काले बादल मंडरा रहें हैं| भीतर निरंतर गर्जन महसूस हो रही हैं| अनंत तक बरसात की आशंका हैं और आँसू का झरना भी तत्पर हैं| दूर तक देखने पर केवल काले साये नज़र आ रहे हैं और अपने आसपास घोर अँधेरा| अँधेरा परिचित मालूम पड़ रहा हैं वैसे यह परिचित अँधेरा, कई अपरिचित अँधेरों ने मिलकर जन्मा हैं|  यह शोरगुल करती दुनिया अपने साथ कितना गहरा सन्नाटा लेकर चलती हैं|  (मौत से भी गहरा सन्नाटा) आदमी अपने काम का शोर इतना बढ़ा देता हैं कि वह बच सके इस सन्नाटे से पर वह अपने भीतर के सन्नाटे से नहीं बच पाता| (आदमी लौटता हैं एक दिन दुनिया के शोर से अपने भीतर के सन्नाटे की ओर|) माँ का आँचल जब छूटा तो कई दिनों तक काल्पनिक आँचल में मैंने ख़ुद को छुपाये रखा|  (कल्पना की आयु बहुत छोटी होती हैं और वास्तविकता की आयु, इंसान के जीवनकाल के बराबर|) कल्पना ने जब धक्का मार के वास्तविकता की झोली में फेंका तब मैंने ख़ुद को कठपुतली के सामान पाया| जो सुबह उठ के रोज़ी-रोटी के लिए भागती और शाम को ज़िम्मेदारियों का हिसाब-किताब देती| दुनिया को जीवित और मैं ख़ुदको मृत देखने लगी|