सिर पर अतीत का भार दाब लगा रहा है और सिर के ठीक ऊपर काले बादल मंडरा रहें हैं| भीतर निरंतर गर्जन महसूस हो रही है| अनंत तक बरसात की आशंका है और आँसू का झरना भी तत्पर है| दूर तक देखने पर केवल काले साये नज़र आ रहे हैं और अपने आसपास घोर अँधेरा| अँधेरा परिचित मालूम पड़ रहा है वैसे यह परिचित अँधेरा, कई अपरिचित अँधेरों ने मिलकर जन्मा है|
यह शोरगुल करती दुनिया अपने साथ कितना गहरा सन्नाटा लेकर चलती है|
(मौत से भी गहरा सन्नाटा)
आदमी अपने काम का शोर इतना बढ़ा देता है कि वह बच सके इस सन्नाटे से पर वह अपने भीतर के सन्नाटे से नहीं बच पाता|
(आदमी लौटता है एक दिन दुनिया के शोर से अपने भीतर के सन्नाटे की ओर|)
माँ का आँचल जब छूटा तो कई दिनों तक काल्पनिक आँचल में मैंने ख़ुद को छुपाये रखा|
(कल्पना की आयु बहुत छोटी होती है और वास्तविकता की आयु, इंसान के जीवनकाल के बराबर|)
कल्पना ने जब धक्का मार के वास्तविकता की झोली में फेंका तब मैंने ख़ुद को कठपुतली के समान पाया| जो सुबह उठ के रोज़ी-रोटी के लिए भागती और शाम को ज़िम्मेदारियों का हिसाब-किताब देती| दुनिया को जीवित और मैं ख़ुदको मृत देखने लगी|
माँ के जाने के बाद सब बिखर गया और सब ने इस बिखराव के साथ अपने-अपने हिसाब से रहना सीखा| हम में से किसी ने अभी तक जीना नहीं शुरू किया| जीना शायद माँ से जुड़ा था| पिता पहले से और चुप हो गए| मैंने शायद बोलना छोड़ दिया| माँ के बाद, हम माँ को लेकर असहज महसूस करने लगे| माँ से जुड़ी चीज़ों को नज़रों के सामने रखते कि लगे माँ आसपास ही कहीं हैं|
(इंसान के जाने के बाद, हम उस इंसान को चीज़ों में सहेज लेते है|)
कुछ सालों तक सिलसिला ऐसे ही चलता रहा| हम माँ के बाद, ख़ुदको माँ के और पास पाने लगे|
(एक ही समय में कितने सौभाग्य और दुर्भाग्य की बात है कि अचानक किसी के चले जाने के बाद, हम ख़ुदको उसके और पास महसूस करने लगते है|)
मृत्यु हमसे सब कुछ छीन लेती है और हमें ख़ाली कर देती है पर फिर समय ख़ाली को भरना शुरू करता है| घड़ी की सुई की टिक-टिक के साथ हम भी सहज होते जाते है अपने इर्द-गिर्द के अँधेरों से|
~आमना
उफ्फ ❣️
ReplyDeleteVery nice
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