बहुत कम बार जीवन में ऐसा होता है कि आप बहुत सारा कुछ महसूस कर रहे हों लेकिन वो बहुत सारे कुछ को अभिव्यक्त करने के लिए कुछ शब्द भी साथ देने से लगातार इंकार कर रहे हों। कुछ ऐसा ही मैं बहुत दिनों से महसूस कर रही हूँ । पोस्ट से आयी कुछ किताबें मुझे लगातार ऐसा महसूस करा रही हैं। किताबों से कत्थई रंग का पर्दा हटाते हुए मानो बंजर आँखों में फूल खिलने लगे। भेजने वाले को मैं व्यक्तिगत तौर पर नहीं जानती लेकिन बतौर इंसान बहुत अच्छे से जानती हूँ। केवल मेरे हिस्से किताबें नहीं आयी, ढेर सारा स्नेह मेरे हिस्से पहुँचा। मेरे और भेजने वाले के बीच ख़ून का रिश्ता नहीं है पर एक किताबी रिश्ता है। शायद ख़ून से भी गहरा ......... किताबों में गढ़े पात्र कभी-कभी, दो भिन्न लोगों के बीच गढ़ देते हैं एक किताबी रिश्ता। किताबों की तरह अमर और अजर। मेरी गिनती की किताबों के बीच वे किताबें अलग से झाँक रही हैं। मैं निहार रही हूँ उनके झाँकने को। किताबों के पन्ने पलटते हुए मानो संगीत निकल कर कमरे को लयबद्ध कर रहा हो। अगर स्वर्ग जैसा कुछ होता है तो यक़ीनन मैं स्वर्ग में हूँ। एक व्यक्ति जब किसी व्यक्ति को...