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"किताबी रिश्ता"



बहुत कम बार जीवन में ऐसा होता है कि आप बहुत सारा कुछ महसूस कर रहे हों लेकिन वो बहुत सारे कुछ को अभिव्यक्त करने के लिए कुछ शब्द भी साथ देने से लगातार इंकार कर रहे हों। कुछ ऐसा ही मैं बहुत दिनों से महसूस कर रही हूँ । पोस्ट से आयी कुछ किताबें मुझे लगातार ऐसा महसूस करा रही हैं। किताबों से कत्थई रंग का पर्दा हटाते हुए मानो बंजर आँखों में फूल खिलने लगे। भेजने वाले को मैं व्यक्तिगत तौर पर नहीं जानती लेकिन बतौर इंसान बहुत अच्छे से जानती हूँ। केवल मेरे हिस्से किताबें नहीं आयी, ढेर सारा स्नेह मेरे हिस्से पहुँचा। मेरे और भेजने वाले के बीच ख़ून का रिश्ता नहीं है पर एक किताबी रिश्ता है। शायद ख़ून से भी गहरा ......... 


किताबों में गढ़े पात्र कभी-कभी, दो भिन्न लोगों के बीच गढ़ देते हैं एक किताबी रिश्ता। किताबों की तरह अमर और अजर। मेरी गिनती की किताबों के बीच वे किताबें अलग से झाँक रही हैं। मैं निहार रही हूँ उनके झाँकने को। किताबों के पन्ने पलटते हुए मानो संगीत निकल कर कमरे को लयबद्ध कर रहा हो। अगर स्वर्ग जैसा कुछ होता है तो यक़ीनन मैं स्वर्ग में हूँ।  


एक व्यक्ति जब किसी व्यक्ति को कुछ देता है तो अपना कुछ हिस्सा भी उसमें छुपा देता है। उस छुपे हुए हिस्से में दूसरा व्यक्ति अपने छुपने की नयी जगह बना लेता है। हम सब बस छुपने की ही कोशिश में लगे हुए हैं......... कभी सिनेमा देखते हुए, किताबों को पढ़ते हुए, कहीं से गुज़रते हुए, कहीं ठहरते हुए, कभी बोलते हुए, कभी सुनते हुए, कभी कुछ नहीं करते हुए।     


मुझे हमेशा लालच रहता है कि दूसरों का जिया, मैं देख और सुन सकूँ। किताबों में विस्तार में कितना कुछ परोसा हुआ मिल जाता है। किसी बुकस्टोर का चक्कर लगाते हुए लगता है कि सुन्दर दुनिया अक्सर शांत होती है। सुंदरता परत-दर-परत खुलती है। एक झलक में सुंदरता का कुछ अंश ही हम अपनी आँखों की पुतलियों में बटोर सकते हैं। 


भेंट में मिली किताबों की दुनिया घूमते हुए मुझे लग रहा है कि इस दुनिया में मुझे थोड़ी कम ठोकर लगेगी। 


मेरे लिए भेंट में आयी किताबें वह हाथ हैं जिन्हें विनोद कुमार शुक्ल ने अपनी कविता में बढ़ाया हैं......


हताशा से एक व्यक्ति बैठ गया था
व्यक्ति को मैं नहीं जानता था
हताशा को जानता था
इसलिए मैं उस व्यक्ति के पास गया
मैंने हाथ बढ़ाया
मेरा हाथ पकड़कर वह खड़ा हुआ
मुझे वह नहीं जानता था
मेरे हाथ बढ़ाने को जानता था
हम दोनों साथ चले
दोनों एक दूसरे को नहीं जानते थे
साथ चलने को जानते थे।



~आमना 


Comments

  1. Behtarin ❤️

    ReplyDelete
  2. बहुत ही सुंदर लिखा है आपने।
    ईश्वर करे कोई भी ठोकर आप की राह में कभी ना आए।
    The inability to express is often common 🙂
    God bless you.

    ReplyDelete

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