कब आता है ये आख़िर या बस एक उम्मीद का नाम है 'आख़िर|' बड़े समय तक मुझे ऐसा लगता रहा कि किसी एक दिन के इंतज़ार में, हम ज़िंदा रहते है पर असल में उस दिन के इंतज़ार में हम थोड़ा-थोड़ा, हर दिन मरते जाते है| हम जन्म से लेकर मृत्यु तक बस एक इंतज़ार रूपी बस में सवार होकर सफर तय करते है| इंतज़ार, किसी व्यक्ति का कभी तो किसी मक़ाम का और कभी किसी चीज़ का भी नहीं| इंतज़ार मानो हमारी ज़िन्दगी का निचोड़ हो| कितना एकांत होता है इंतज़ार में रहना| कॉलेज की सीढ़ियां चढ़ते हुए, इंतज़ार करना,आख़िरी बार सीढ़ियां उतरने के लिए और पांच साल का गुज़र जाना| नौकरी का इंतज़ार करना, दफ़्तर से घर जाने का इंतज़ार करना, कॉल का इंतज़ार करना, पिता से तारीफ़ सुनने का इंतज़ार करना, माँ के खाने का इंतज़ार करना, अच्छे जीवन का इंतज़ार करना,सुकून का,अपनों के चले जाने के बाद उनके ग़म से उभरने का और कभी अपने आप का इंतज़ार करना|
हम न चाहते हुए भी इंतज़ार में रहते है| इंतज़ार की सबसे बुरी बात यह है कि हम किसी से कभी इंतज़ार साँझा नहीं कर सकते, हमें हमेशा अपने कंधो पर इंतज़ार का बोझ ढोना होता है| इंतज़ार और साँस, दोनों का एक जैसा ही रिश्ता है कोई एक थमा तो हम मर जायेंगे| "आख़िर में सब ठीक हो जायेगा" एक ढोंग है हालाँकि यह भ्रम, जीवन थोड़ा सरल कर देता है|
वाह....शानदार !
ReplyDeleteHamare jazbaat bhi samjhe, hmne bhi khaab dekhe hai. Aap saath ho to theek hai, ni to dates ke hisab bhi rakhe hai.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर लेख दीदी , ✨
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