“कमरा”






 

वही छत, वही चार दीवारें, वही फ़र्श, वही किताबें, वही शांत से फ्रेम, वही खिड़कियां, वही दरवाज़ा, इन सब की आदी हो गयी हूँ पर जब लगता है कि मैं अब ऊबने लगी हूँ तो मैं कमरे की सफाई करने लग जाती हूँ| धूल की परत झाड़ते हुए मानो झड़ने लगता है ऊबना और सब कुछ अपरिचित सा मालूम पड़ता है| घर का यह कमरा मेरे हिस्से तब आया जब मुझे लगने लगा कि मेरा ख़ुदका एक कमरा होना चाहिए| कमरा मिला,कमरे को ख़ूब सजाया, अनगिनत सपने देखें और कमरे ने मुझे हँसता, रोता, खोता, टूटता देखा| 

मैंने जब-जब खिड़की से झांकते हुए चाँद देखा,तब-तब मैंने कमरे में अपने भीतर की ख़ामोशी को घुलते पाया| यह कमरा ज़मीन का केवल एक मात्र टुकड़ा नहीं है इसका हर हिस्सा मानो किताब का पन्ना है जिसमें लिखा है मेरा अतीत और लिखा जा रहा है मेरा वर्तमान| 

मैं जब भविष्य के बारे में सोचती हूँ तो विस्थापन का विचार मुझे अंदर तक झकझोर देता है| जीवन के दुःखों को साँझा करा था इस कमरे ने, इस कमरे का वियोग कौन साँझा करेगा? 

किसी नए शहर में, किसी मकान में. नया-सा कमरा रहेगा जिसमें ज़रूर विस्थापन के अवशेष होंगे हालाँकि मेरी स्मृति में मेरा वह कमरा, मेरे पहले प्रेम जैसा रहेगा| 


~आमना



 

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