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"त्रासदी से संवाद"




जीवन के बीतते दिनों को किसी एक खाँचें में रखने में ख़ुदको को हमेशा असमर्थ पाती हूँ । अच्छे तरीके से न सुख जिया हैं न बुरे तरीके से दुःख से दो-दो हाथ कर पायी। दोष देने के लिए बहुत सी चीज़ें है जैसे समय, किस्मत, लोग हालाँकि सबसे बड़ी दोषी मैं ही रही हूँ। समय पर, बीते समय की बेड़ियों में जकड़ी और आने वाले समय की चिंता में एक कोने से दूसरे कोने भागती हुई । मैं समय की त्रासदी में अपनी हिस्सेदारी देती हुई, बीता रही हूँ जीवन, एक त्रासदी से दूसरी त्रासदी के बीच। 


(त्रासदियों में सबसे बड़ी त्रासदी और सबसे छोटी त्रासदी का मूल्यांकन करना भी एक त्रासदी है।)


प्रेम कच्ची उम्र में हुआ जिसने पक्के घाव दिए| यह शायद सबसे बड़ी त्रासदी होते-होते रह गयी हालाँकि प्रेम का न रहना एक त्रासदी है पर प्रेम तो अजर-अमर होता है| हो सकता है विरह को त्रासदी कहा गया होगा| वैसे मैंने प्रेम में रहते हुए भी विरह महसूस किया है और विरह में रहते हुए, प्रेम| तो हो सकता है जो चीज़ हमारे आसपास घट रही है और जो भी हमारे भीतर सब किसी न किसी त्रासदी की ओर दर्शाती है|


(प्रेम नहीं होना एक त्रासदी है और प्रेम होना भी एक त्रासदी है|)


(हर एक त्रासदी की अपनी एक उम्र होती है वो उम्र ख़त्म हो जाने के बाद, एक नयी त्रासदी को जन्म देकर, चली जाती है हमसे दूर|)


एक रात मैंने अपने उस दिन की हार को रो-रो कर मनाया कि मेरा बदन थकावट में लिपट गया था और मुझे बिस्तर पर लेटते ही नींद आ गयी|


(सपने के टूटने पर नींद उड़ जाती है हालाँकि सपने देखने बंद हो जाने के बाद आदमी हमेशा नींद के झोंके में झूमता है|)


अपनी औकात के अनुसार सपने नहीं देखे क्यूंकि सपने देखने के लिए सिर्फ़ पागल होने की ज़रूरत होती है जो मैं बचपन से रही हूँ| लोगों से ताल-मेल बैठाने की कोशिश में मैंने ख़ुदको शोषित नहीं किया| बुरे लोगों के लिए कभी अच्छे बनने की कोशिश नहीं की| जहाँ भी गयी वहाँ पूरे मन से गयी| मुखोटें पहनने से हमेशा बचती रही| शहर में रहकर लगातार गांव याद आता रहा| जो लोग छोड़कर गए वे स्मृतियों में बार-बार आते रहें|


लेखन मेरे जीवन की एक सुखद त्रासदी रही है जिसका लगातार घटना मुझे जीवित रखता है ज़्यादातर उन मृत अवस्थाओं में जिसमें जीवन की कोई उम्मीद दूर-दूर तक नज़र नहीं आती| बहुत सारे संवाद जिसको लिखने के लिए मुझे कोई सटीक समय नहीं मिला वे बार-बार किसी न किसी तरह से मेरे सामने आ जाते है जिनको सुनना किसी त्रासदी से कम नहीं है|


(हर घटती घटना अपने आप में एक त्रासदी है|)


जन्म से मृत्यु तक पता नहीं कितनी त्रासदियों से हम हँसते-रोते आमना-सामना करते है| त्रासदियों का घटना किसी रोमांस से कम नहीं है| जीवन को जीवित रखने में त्रासदियों का सबसे बड़ा हाथ रहेगा|





~आमना 


Comments

  1. बेहद हृदय स्पर्शी लफ्ज़ और भावनाओं का प्रवाह अत्यंत मौलिक...बहुत उम्दा🙏🙏🤍🤍

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  2. आपका लेखन सुंदर और अद्भुत है।

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  3. "शहर में रहकर , गांव याद आता रहा" 🥺

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