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'समय क्या है...?'



 कभी कोई सवाल इतना व्याकुल कर देता है कि मन दौड़ लगाने को हो आता है पर दौड़ कर सवाल से दूर तो जाया जा सकता है पर ख़ुद से दूर भागना असंभव है| कैलेंडर की अगली तारीख़ में प्रवेश करने के साथ ही अपने आप के सामने तो आना ही पड़ता है| कितना दार्शनिक है न यह सवाल कि समय क्या है?


सुबह उठ कर रोज़-मर्रा के काम में लग जाना और फिर रात को सोते हुए आने वाले कल के काम की फ़ेहरिस्त को दिमाग़ में दोहरते हुए, नींद की आग़ोश में सो जाना| 


समय साथ ही निकलता होगा सुबह में पर मैं अपने कामों में इतनी उलझी होती हूँ कि उससे बात करके उसको समझने की कोशिश नहीं कर पाती| एक रोज़ समय की सुई समय से तेज़ भागी तो मैं पीछे छूट गयी| हड़बड़ाहट में मैं जब घर से निकलते ही दौड़ने लगी मानो अपनी जान बचाने के लिए दौड़ रही हूँ और इसी के चलते मैं अचानक समय से टकरा गयी लेकिन मैंने ख़ुदको संभाला और कलाई में बंधी घड़ी को देखा तो थोड़ी स्थिर हुई कि मैं तो समय से आगे निकल चुकी हूँ| एक बार फिर घड़ी की ओर देखा और मन की संतुष्टि के लिए पीछे मुड़ कर देखा तो समय कहीं नहीं दिख रहा था केवल धुंध दिखाई दे रही थी|


बचपन से ही अपने आसपास के लोगों को सवाल फेंक के मारती थी| क्यों, क्या, कैसे के इर्द-गिर्द घूमते हुए जब थकान हावी होने लगती तो शांत हो जाती और आँखें बंद कर- सपनों के समुद्र में गोता लगाने लगती| 
सवाल से टकराते ही हम जवाब जाने के लिए आतुर हो जाते हैं| पर सवालों की यात्रा का अंत केवल जवाब पा लेना नहीं होता बल्कि जवाब ढूंढने की जद्दोजहद का सुख भोगना भी होता|


एक तेज़ हवा का झोंका शरीर को छू के निकला तो होश आया कि धुंध छट चुकी है| समय ने फिर रफ़्तार पकड़ ली है| मैंने समय क्या है के सवाल से पल्ला झाड़ लिया है और निरंतर समय के पीछे-पीछे चलना शुरू कर दिया है हालाँकि किसी रोज़ समय से बहुत आगे निकलकर, किसी सुस्त शाम के सिरहाने बैठे हुए सोचूंगी कि समय क्या है?

~आमना 

Comments

  1. अहा 🌼
    आगे भी ऐसी ही रचनाएँ पढ़ने की उम्मीद है।

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  2. बहुत ही सुंदर लिखा है बहन।

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