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"अम्मा का बच्चा होना"


माँ को अपनी माँ के बारे में बात करते हुए मुझे माँ में उनकी माँ की बेटी दिखती थीं, चंचल, नादान बच्ची। शायद वह भूल जाती थीं अपना माँ होना। उन्हें दिखने लगता था झूला, जिसको झूलते समय उन्हें चोट लगती थी और वह दौड़ती हुई माँ के पास पहुँचते ही लिपट जाती थी। मैं अम्मा से लिपट कर उन्हें उनका माँ होना याद दिलाती थी।

(बच्चे रहते हुए हम अपने माँ-बाप का कभी बच्चा होना सोच नहीं पाते हैं।)

माँ का होना सुकून है। माँ के न होने पर पिता के भीतर की माँ बाहर आती है, जिसे पितृसत्ता के विचारों ने नहीं पाला-पोसा होता है। कोमलता और ममत्व से ओतप्रोत पिता, माँ हो सकते हैं, पर वह माँ की जगह हमेशा रिक्त छोड़ देते हैं, क्यूंकि यह पिता का पितृ भाव है।

माँ परियों की कहानी सुनाते-सुनाते मुझे अपने साथ किसी अजीब-ओ-ग़रीब दुनिया में ले जाती थीं, जहाँ लोग ख़ुशहाल थे, जहाँ सब एक दूसरे को दुआ देते थे। शायद माँ ने यह दुनिया अपनी माँ के साथ भी घूमी होगी तभी हर चप्पा-चप्पा माँ जानती थीं।

दूर से दुनिया की सारी माओं को देखने पर एक चीज़ सामान्य दिखती है कि समाज ने उन्हें अपने चंगुल में जकड़ रखा है। क़रीब से देखने पर उनके हाथ-पाँव पर किसी तरह का कोई निशान नहीं मिलता, लेकिन उनके ख़यालों पर बड़े गहरे घाव नज़र आते हैं, जिसको कई सदियाँ लगेंगी भरने के लिए। न चाहते हुए भी एक माँ अपने बच्चे को कुछ घाव भेंट करती है।

अम्मा ने घर सँभालने के साथ हमें भी सँभाला। दुनिया हार कर जब भी हम घर लौटे तो हमें यक़ीन था कि अम्मा का आँचल हमारी हार को छुपा लेगा और हमेशा ऐसा ही हुआ। अम्मा ने हमारे हिस्से का दुःख छीन कर ख़ुद ढोया। जब हमें बच्चों की तरह रोना होता तो अम्मा बिलख कर रोती हुई मिलती। अम्मा में यक़ीनन बच्चा था, पर वह कभी गर्भ से बाहर नहीं आ पाया।

अम्मा अक्सर अपने अम्मा और अब्बा को याद करके रोती थीं। मुझे हमेशा आश्चर्य होता रहा कि ज़िन्दगी के दो सबसे ज़रूरी लोगों के न रहने पर आदमी कैसे ख़ुद को सँभाल लेता है। यह आश्चर्य मुझे अब नहीं होता। अम्मा की कहानियाँ मेरे साथ अब भी और अब्बा की नसीहतें आज भी पीछा करती हैं। पर हाँ! कभी-कभी वे इतने दूर लगने-लगते कि मुझे रोना आ जाता है। वे आँसू इतने निजी होते हैं कि वे कटाक्ष करते हैं मेरे बचपन के सार्वजनिक आँसुओं का।

मैं उन दिनों सोचती कि नानी के चले जाने के बाद; अम्मा ने पहले क्या खोया होगा? - अपने भीतर का बच्चा या माँ।

(लेकिन मैं इन दिनों इसका जवाब महसूस करती हूँ।)

~आमना 


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