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"शोषित पाँव"

 


एक वक़्त बाद बहुत ज़रूरी हो जाता है लौटना| जहाँ से पाँव ने भागना शुरू किया था शायद वहाँ लौटना असंभव होता है इसीलिए उस तरफ़ लौटने का विचार भी नहीं आता| लेकिन कभी-कभी कहीं बस लौट जाने को मन उतावला हो जाता है, जहाँ पाँव पर आये छालों को देखा जा सके, उन्हें खुले में छोड़ा जा सके और हाँफते हुए शरीर को फिर से हाँफने के लिए तैयार किया जा सके|


बचपन में घर के बड़ों ने माँ और पिता को बतला दिया था कि इसके पाँव किसी एक जगह नहीं टिकेंगे| वाक़ई, पाँव हवा में ही रहें| कभी पाँव किसी शहर में लगभग टिकने को होते तो दूसरे शहर से बुलावा आ जाता| पलायन से भरपूर जीवन दूर से देखने में सुन्दर लगता है हालाँकि पास से देखने में एकदम फीका होता है| एक शहर की सुगंध लिए दूसरे शहर भागती नाक, अपनी पसंदीदा गंध भूल जाती है| 


किसी एक शहर को अपना शहर बोलने में ज़बान लड़खड़ाने लगती है| किसी एक शहर में इतना रहना नहीं हुआ कि उस शहर के आग़ोश में चैन से नींद आयी हो| मुझे हमेशा लगता रहा कि भागते रहना, हमें जीवन की मुश्किलों से निज़ात दिलाता है क्यूँकि भागते हुए इंसान का ध्यान सिर्फ़ भागने पर रहता है|

(ख़ानाबदोश जीवन एक इंसान में जितना कुछ जोड़ता है उससे ज़्यादा घटाता है|)


जैसे ईश्वर ने दिन-रात, दुःख-सुख इत्यादि बनाया है उसी तरह से उसने भागना और रुकना भी बनाया होगा पर हम क्यों सिर्फ़ भागने पर ज़ोर देते हैं| हमें क्यों लगता हैं कि अगर रुके तो भागने वाले लोगों के पाँव के नीचे दब कर मर जायेंगे| 

(एक छोटे से जीवन में हमें कितना कुछ लगातार लगता ही रहता हैं|) 


अक्सर मुझे मेरे पाँव को देखकर आश्चर्य होता है और दूसरों के पाँव देखकर भीतर भय पैदा होता है| आश्चर्य और भय भागने के दो छोर है और इन दोनों को जोड़ने के पुल का नाम शायद, "रुकना" होता है| इंसान इस उम्मीद के साथ भी भागता है कि ना-उम्मीदी के चंगुल से बच सके| 

 

अब मुझे मेरे पाँव पर तरस आने लगा है और आये भी क्यों न| कभी फ़ुर्सत के दो पल निकालकर नहीं बैठ पायी अपने पाँव के साथ| पाँव के साथ हमेशा अन्याय किया| लेकिन पाँव को न्याय देते हुए मैंने अपने आसपास की दुनिया को अपराधी करार दिया|

(दूसरे के सर पर जुर्म मँढ़ने से भी मन से जुर्म नहीं निकाला जा सकता है|)  


पाँव को अब कहीं टिकाना चाहिए किसी सदाबहार जंगल में क्यूँकि मरुस्थल में भागने से पाँव के छाले स्मृतियाँ बनने में असमर्थ रहेंगे| 


~आमना

Comments

  1. “एक वक्त बाद बहुत ज़रूरी हो जाता है लौटना।” बहुत ही बढ़िया लिखा है बेटा।

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