सहसा नींद टूटी|
(नींद खुलने वाले दिन कहीं बहुत पीछे छूट चुकें हैं|)
नींद टूटने का कारण आँखें बंद में देखा गया, एक भयानक सपना था| काला पानी से प्रेरित| एक छोटा कमरा जिसमें रोशनी के आने के लिए एक छोटा सा छेद था पर दूर-दूर तक फैला हुआ था घनघोर सन्नाटा| कमरे के बीचों-बीच खड़े होकर, दीवारों को छुआ जा सकता था| मेरी साँसों की गति अब प्रकाश की गति को मात दे रही थी| अब मैं आँखें खोलकर इस भयानक सपने की परिकल्पना करने में जुट गयी कि तभी मैंने पाया- मेरा बदन पसीने से तर-ब-तर हुआ है| खिड़की से बाहर झाँकने पर बहुत दूर दिखने वाला अनंत, कोहरे की वजह से बहुत पास नज़र आ रहा है| आज दिसंबर की एक तारीख़ है|
(कभी-कभी हम दिन, महीने और साल से अनजान हो जाते हैं फिर अचानक से कहीं तेज़ हवा का झोंका शरीर को चीरता हुआ निकलता है।)
भयानक सपनों में किसी तरह का कोई भूत, पिशाच या खूनखराबा नहीं होता है फिर भी वे इतने भयानक होते है कि मेरी कई दिनों की नींद ग़ायब हो जाती है| बहुत सालों पहले जब भी मुझे किसी बात से डर लगता था तो मैं सो जाती थी पर अब किसी चीज़ से डर के चलते में खुदको उस डर के हवाले कर देती हूँ| अब किसी डर से भागना कायरता है और बहादुर होने का सबक़ हमें हमेशा ही मिला है।
मैं इस भयानक सपने से कुछ निष्कर्ष निकालूँ कि उससे पहले कोई और भयानक सपना दस्तक देने लग जाता है| सोच रही हूँ कि अपने थरथराते शरीर से निकलते अलाव के पास कुछ देर बैठ कर, आने वाले भयानक सपने की दस्तक का इंतज़ार कर लेती हूँ|
~आमना
कितना अच्छा लिखते हो ! निज सा महसूस होता हैं !; 🙂
ReplyDeleteShukriya....hum sab ka nij ek sa hi hai😅
Deleteखिड़की से बाहर झाँकने पर बहुत दूर दिखने वाला अनंत, कोहरे की वजह से बहुत पास नज़र आ रहा है| khoobsurat likha hai aapne
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