सड़क पार करते मेरा हाथ अपने आप ही अम्मा का हाथ थाम लेता था मानो अम्मा के हाथ में अपना हाथ देते हुए डरावनी सड़क कम डरावनी लगने लगती| मेले जाते तो आँखें रंग-बिरंगी चीज़ों पर अटकती लेकिन सारा होश-ओ-हवास अम्मा का हाथ थामे रहने में रहता कि कहीं भीड़ में गुम न हो जाये|
( किसी के हाथ में अपना कोमल हाथ देते हुए लगता है कि दुनिया की कठोरता कुछ क्षणों के लिए निलंबित हो गयी है|)
मुझे नहीं मालूम हाथ थामने का इतिहास कितना पुराना है पर मेरे जीवन में हाथ थामना बहुत पुराना है| अनगिनत दफ़ा मैंने अम्मा का हाथ थामा है| फिर बड़े होने के बाद शायद हाथ की उँगलियों पर गिन सकती हूँ कि कितने दफ़ा अम्मा का हाथ थामा है|
( बड़े होने के साथ हमारे भीतर की झिझक भी बड़ी होने लगती है|)
छोटे होते हुए मैंने अम्मा के हाथ का स्पर्श लगातार महसूस किया| अब बड़े होने के बाद उन स्पर्शों की स्मृति ही मेरे साथ है| मैंने हाथ थामते हुए अम्मा का हाथ कभी नहीं देखा लेकिन अब अक्सर मैं दूर से अम्मा के हाथ का मुआइना करती हूँ| झुर्रियाँ और उभरी नसों से सने हुए फटे हाथों के बावजूद अब भी वह लगातार काम करती हैं| वह इतनी बूढ़ी नहीं हैं जितनी वह दिखने लगी हैं| उनका कभी जवान होना, मेरे ज़ेहन में एक धुंधली याद की तरह है| उस धुंधली याद को मैं कुरेदना चाहती हूँ पर अम्मा को देखकर साहस नहीं आता क्यूँकि शायद उनका जवान होना उनके लिए भी कोई मिथ्या-सा है जिसको कुरेदने पर वर्तमान जिस नींव पर खड़ा है, वह ढह जाएगी|
एक अम्मा मेरी आँखों के सामने हैं और एक अम्मा जिसको मैंने कभी नहीं देखा पर महसूस किया| मैंने अम्मा को अपने जीवन में दो बार बिखरते हुए देखा है; एक तब जब अम्मा ने अपनी अम्मा खोयी थी और दूसरा तब जब पिता चल बसे थे| पहली बार जब बिखरी थी तो पिता साथ थे और दूसरी बार, वे नहीं थे| मैंने पिता खोया था और अम्मा ने अपना बहुत कुछ| पिता के चले जाने के बाद, एक दिन मैंने अम्मा का हाथ थामते हुए कहा था- "कि पिता होते तो कहते सब ठीक हो जायेगा|"
उस क्षण का स्पर्श आज भी मेरे ज़ेहन में ज्यों का त्यों छपा हुआ है|
(किसी का ढाढ़स बाँधते हुए मनुष्य और मनुष्य हो जाता है|)
पिता अक्सर अम्मा का हाथ थामते हुए कहते थे- "कि तुम्हारा साथ, मेरे जीवन को पूर्ण करता है|"
इसके जवाब में अम्मा बस मुस्कुरा देती थीं|
अम्मा आज भी जब किसी मौक़े पर मुस्कुराती हैं तो साफ़ नज़र आता है उनकी मुस्कराहट में पिता का रिक्त स्थान|
~आमना
हमेशा की तरह बहुत सुंदर लिखा है बहन।
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