Skip to main content

"घर की यात्रा"


एक लम्बी यात्रा के दौरान अलग-अलग शहरों में अलग-अलग बिस्तर पर रात गुज़ारने के बाद, शरीर को घर के बिस्तर की याद अपने आप आने लगती है| खिड़की से ऊनी पहाड़ साफ़ नज़र आ रहा है| बिस्तर पर कल रात का थका शरीर अब ऊर्जा से भर चुका है| यात्रा में होते हुए, पुरानी यात्रायें मेरे कुर्ते का एक छोर ज़ोर-ज़ोर से खींच रही हैं| मैं न चाहते हुए भी वर्तमान की यात्रा से अतीत की यात्राओं की यात्रा करने लग जाती हूँ| कितना कुछ है जिस पर मैंने अपना नियंत्रण बीते सालों में खो दिया है| बीते सालों की घटनाओं की खाई में गिरने से मुझे इन यात्राओं ने ही बचाया| सूरज की किरणों ने सुबह होने का अहसास लगातार कराया लेकिन उम्मीद की किरण ने आँखें थोड़ी देर से खुलवायी तब तक तो मैंने ना-उम्मीदी में भटकना भी शुरू कर दिया था|


बहुत पहले किसी यात्रा का नाम सुन कर जी मतलाने लगता था अब बार-बार यात्राओं का साथ ले कर जी ठीक करती हूँ| समय के साथ कितनी सारी चीज़ों को लेकर मेरा विचार बदला, मैं बदली लेकिन घर को लेकर मेरा जुड़ाव और गहरा हुआ| गहराई का अंदाज़ा मुझे तब हुआ जब घर नहीं बचा| दीवारों से रिसता हुआ ख़ालीपन रह गया, घर गुज़र गया| सामान की देख-रेख अब धूल मिट्टी करने लगी| आंगन की जगह घास ने ले ली, बगीचे में पतझड़ ठहर गया और मुझमें हमेशा के लिया घर, घर कर गया|


जिस घर को मैंने छोड़ा था वह वास्तव में हुआ करता था लेकिन मैं उसे अब कल्पना में ही ढूंढ सकती हूँ| करवट बदलते हुए नीचे गिरने का डर रहता था हालाँकि अब करवट बदलते हुए, घर की याद भी करवट बदल लेती है| बर्फ़ से ढके हुए पहाड़ों में, मैं कुछ खोजने नहीं आती हूँ लेकिन एक लालच साथ लाती हूँ कि काश! बर्फ़ के जैसे कोई परत मेरे अतीत को ढक लें जिससे मैं वर्तमान की यात्रा में खो सकूँ| 

(काश...... बोलकर हम कितनी उल-जलूल बातें कर लेते हैं|)


घर गुज़रे हुए बहुत साल गुज़र गए| थोड़ा-सा घर जो मुझमें रह गया उसे लेकर इस यात्रा से अलविदा कहते हुए, अपने मकान की ओर लौट रही हूँ क्यूँकि घर की कोंपलें कभी-कभी मकानों में भी फूटती है|



~आमना 

Comments

  1. Bahut behtarin tarike se aapne likha hai

    ReplyDelete

Post a Comment

Popular posts from this blog

"अकेलेपन से एकांत की ओर"

एक वक़्त बाद अकेलापन इतना अकेला महसूस होने लगता है मानो वहाँ हमारा होना भी एक भ्रम जैसा हो| ख़ुद से बात करने के लिए कुछ नहीं बचता| कुछ नया करने से पहले ही मन ऊब जाता है| अकेलापन चुभना शुरू कर देता है| हम खोजने लगते है एक ऐसी जगह जहाँ से सब कुछ इतना भरा हो कि हमें अकेलापन का पता ही न चले| अंततः हम व्यस्तता का हाथ थाम लेते है| (अकेलापन तब खलने लगता है जब हम अकेले होने का मूल्यांकन करना शुरू कर देते है|) फ़िलहाल मैं छत के एक कोने में बैठकर अपने आसपास की दुनिया को देख रहीं हूँ| कितनी अस्थिर है दुनिया| लगातार भाग रही है भीड़ से अकेलेपन की ओर और अकेलेपन से भीड़ की तरफ़| कुछ को कहीं-न-कहीं पहुँचने की जल्दी है और कुछ को कहीं लौटने में अभी देरी है| हालाँकि मुझे इस पल में ठहरे रहने का सुख, दूसरों के दुःखों को महसूस करके नहीं गवाना है|  आज पहाड़ काफ़ी साफ़ दिख रहे है| पंछी आसमान में लम्बी और ऊँची उड़ान भर रहे हैं| कितना सुख मिलता है प्रकृति के आश्चर्य से बार-बार आश्चर्यचकित होने में| एक ठंडी हवा का झोका जैसे ही बदन छूता है वैसे ही एक सिहरन भीतर दौड़ लगाने लग जाती है| मैं भूल गयी थी कि अतीत के पन्न

"त्रासदी से संवाद"

जीवन के बीतते दिनों को किसी एक खाँचें में रखने में ख़ुदको को हमेशा असमर्थ पाती हूँ । अच्छे तरीके से न सुख जीया हैं न बुरे तरीके से दुःख से दो-दो हाथ कर पायी। दोष देने के लिए बहुत सी चीज़ें है जैसे समय, किस्मत, लोग हालाँकि सबसे बड़ी दोषी मैं ही रही हूँ। समय पर, बीते समय की बेड़ियों में जकड़ी और आने वाले समय की चिंता में एक कोने से दूसरे कोने भागती हुई । मैं समय की त्रासदी में अपनी हिस्सेदारी देती हुई, बीता रही हूँ जीवन, एक त्रासदी से दूसरी त्रासदी के बीच।  (त्रासदियों में सबसे बड़ी त्रासदी और सबसे छोटी त्रासदी का मूल्यांकन करना भी एक त्रासदी है।) प्रेम कच्ची उम्र में हुआ जिसने पक्के घाव दिए| यह शायद सबसे बड़ी त्रासदी होते-होते रह गयी हालाँकि प्रेम का न रहना एक त्रासदी है पर प्रेम तो अजर-अमर होता है| हो सकता है विरह को त्रासदी कहा गया होगा| वैसे मैंने प्रेम में रहते हुए भी विरह महसूस किया है और विरह में रहते हुए,प्रेम| तो हो सकता है जो चीज़ हमारे आसपास घट रही है और जो भी हमारे भीतर सब किसी न किसी त्रासदी की ओर दर्शाती है| (प्रेम नहीं होना एक त्रासदी है और प्रेम होना भी एक त्रासदी है|) (ह

"मृत घर और आवारा मकान"

जिस तरह से मृत्यु नहीं टाली जा सकती उस तरह से एक उम्र के बाद घर को छोड़ना नहीं टाला जा सकता है| और तब हमें केवल घर का पता याद रह जाता है| जीवन में हर तरह की यात्रा घर से प्रारम्भ होती है लेकिन दुर्भाग्य से किसी भी यात्रा का अंत घर पर नहीं होता है| जीवन गतिशील होता है और इसके विपरीत होता है ठहराव से भरपूर घर| घर उद्गम है जिसके पास लौटना असंभव है| (असंभव में एक तरह का शांत दिलासा है|) लम्बे समय तक घर मेरी चारों दिशाओं में रहा फिर समय बीत गया, अब किसी दिशा में मुझे घर नहीं मिलता| घर अब मकान में तब्दील हो चुका है फिर भी मैं कभी-कभार उस मकान में घर की गंध सूँघने जाती हूँ लेकिन चौखट लाँघते ही मुझे स्थिर मकान में दौड़ता घर दिखने लगता है| वह दौड़ता घर मुझे कुचल कर मकान की चौखट लाँघ कर कहीं खो जाता है| मैं घर को पकड़ने नहीं दौड़ती क्यूंकि अब दौड़ने का साहस मेरे भीतर नहीं बचा है|  आँगन में लगी तुलसी अब सूख चुकी है पर मेरी घर की खोज अभी भी वैसी ही है जैसे तुलसी के अवशेष की अपनी जगह| पिता की चारपाई के पाए अब कमज़ोर हो चुके है जैसे वह अपने आख़िरी दिनों में हो गए थे| माँ की अलमारी में दीमक लग चुका ह