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"बरगद"

 



दुनिया के विस्तार के साथ हमारा आपसी जीवन सिकुड़ता गया | बरगद ओझल होता गया और बरगद जैसे लोगों की छाँव से उठकर, ख़ाली कमरों की दहकती दीवारों में कमर टिकाये बैठ गए और जीवन क्या है का जाप करने लगे| हमने अपना घेरा इतना छोटा कर लिया कि उसमें पूरे तरीक़े से हम ही नहीं आ पा रहे हैं । गाँव के घरों में छोटे-छोटे पाकिस्तान बन गए। बाशिंदे शहर के मकानों में खिलखिलाती धूप टटोलने लगे। अपना दुःख-सुख संदूक में रखकर, गंगा में बहा दिया। इतने खाली हो चुकें हैं कि बात करने में शब्दावली शून्य मिलती है। हमें तो अनंत तक महसूस करने का शऊर मिला था। हम तो शून्य से हाथ-पैर मारने वाले लोग हो गए|


किसी का सान्निध्य मिलना, बैठे-बिठाये कैसे एक जीवन काल का निचोड़ हमारी थाली में परोस देता है| हम मानवता बचाने की बात करते हैं और किसी मानव से बात करने में हमारी उलझने बढ़ जाती हैं| दिमाग़ी संतुलन पर इतना ज़ोर देते हैं कि मानवीय संतुलन इस ज़ोर के तले दम तोड़ देता है | एक दूसरे का कन्धा बनने के बजाए कन्धा तान कर खड़े मिलते हैं। सभ्य सभ्यता का आभूषण पहने सारे असभ्य काम कर जाते हैं। कहीं से गुज़रते हैं तो गुज़ारना भी याद नहीं रहता। होश में रहकर ऐसे बात करते हैं कि मानो बेहोश हों। अपनी धुन में रहने का ढोंग करते हैं। कहीं पहुँचते हैं तो आधे-अधूरे और कहीं से निकलते हैं तो पूरे। ज्ञान का झूठा दिखावा करते हैं। झूठ को सच मानते हैं। प्रेम में क़सीदे पढ़ते हैं और वियोग में खीज उठते हैं। बाहों में दुनिया समेट लेना चाहते हैं और किसी को थोड़ी सी दुनिया दिखाने में हिचकिचा जाते हैं। 

 

कभी बरगद नज़र आ जाये तो आश्चर्य होने लगता है। हम ऊँची इमारतों के किसी छोटे से हिस्से में रहने के आदी हुए लोग, हवादार घरों में रहते हुए लोगों को देखकर; ख़ुद को बेबस महसूस करने लगते हैं। जितना हैं उसको कम समझकर बहुत के पीछे, पागल बैल की तरह दौड़ते हैं। शरीर में हरकत है लेकिन हरकतों से बे-जान हो चुकें हैं। बे-जान चीज़ों से दिल-लगी करते हैं।


कुछ क़दम पीछे लेकर हमें पुनः मानव बनने पर विचार करना होगा। लोगों के बीच से उठकर जाने की जगह लोगों के बीच बैठना शुरू करना पड़ेगा। बरगद की छाँव के नीचे कुछ देर ठहरने होगा और बरगद जैसे लोगों को खोजना होगा। 


~ आमना 

Comments

  1. कभी लगता है फिर से सभ्यता का विकास हो , फिर से अविष्कार हो , इस दुनिया ने बहुत सी चीजें खोजकर बहुत कुछ खो दिया है, जैसे वो पुराना बरगद वो सुकून वो एहसास, वो गांव वो सलाहियत, वो रूहानियत, बहुत कुछ

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