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"धुनों में पिरोयी कहानियां"

 


कोने में बैठी हुई कुर्सी ख़ाली पड़ी है| मेरा कमरे में होना वह अपनी आँखों में क़ैद कर रही है| कमरे से निकलने के बाद, मेरे एकांत से वह क्या संवाद करती होगी; यह मैं सोच रही हूँ | हम दोनों अपनी जगह पर चुपचाप बैठे हुए, दौड़ते हुए विचारों के पीछे भागते हैं| वह मेरे जीवन के बारे में कहानियां गढ़ती है और मैं अपने जीवन की कहानियों को टटोलती हूँ| जब अपनी कहानियों को टटोलते हुए ऊबने लगती हूँ तो खिड़की से बाहर ताकना शुरू कर देती हूँ | बाहर आते-जाते लोगों के बारे में मनगढ़ंत कहानियां गढ़ने लगती हूँ | हम दोनों के द्वारा गढ़ी गयी कहानियों की भनक कमरे को भी नहीं लगती है| अपनी-अपनी कहानियों का संरक्षण हम ख़ुद करते है, चुप रहकर, अनजान बने रहकर| हम एक दूसरे के जीवन में हस्तक्षेप करने में कतराते है| हमें लगता है कि अगर हमारी कहानियों ने चौखट लाँघी तो वे हमारा पर्दाफ़ाश कर देंगी| हमें पाश-पाश कर देंगी| हमें कहानियों का गट्ठर ढोने में कभी थकान नहीं हुई| हमें बचाये रखने में कहानियों का हाथ है लेकिन हर दिन हमें थोड़ा-थोड़ा तबाह भी कहानियां ही करती है| 

 

एक कहानी से प्रस्थान करते हुए, दूसरी कहानी में प्रवेश करने के बीच के अंतराल में हम ढूंढते है, एक धुन| धुन के सहारे हम कुछ देर कहानी गढ़ने को स्थगित करना चाहते है, लेकिन ढूंढने पर कहाँ ही कुछ मिलता है| कोई भूली-बिसरी धुन जब कई सालों बाद कानों से होकर गुज़रती है तो हम उस धुन के साथ फिर से चलना शुरू करते है। सबसे पहले हम वहाँ पहुँचते है जहाँ उस धुन से हमने विदा ली थी| उसके बाद बारी-बारी कर, हम हर उस जगह जाते हैं जहाँ उस धुन पर हम मदहोश हुए थे। कुछ धुन ऐसी भी रहती है जिसे हम सुन नहीं सकते लेकिन उन पुरानी जगहों से गुज़रते हुए केवल याद कर सकते है।कहानी गढ़ना स्थगित नहीं होता है| हम धुनों में कहानियां पिरोने लगते हैं | कुछ कहानियों के बीच में हम होते है और कुछ कहानियों से कोसों-दूर, लेकिन कहानियों का स्पर्श हम निरंतर महसूस करते है| हम कहानियों का रूपांतर नाटक में होते हुए भी देखते है। कुछ में हम नायक होते हैं, कुछ में दर्शक और किसी एक क्षण कुर्सी। कुर्सी बने रहने के लिए, एकांत से संवाद करते रहना होगा| मोहन राकेश का "आषाढ़ का एक दिन" धीमे-धीमे रेंगता हुआ आ रहा है। मल्लिका पीछे छूट चुकी है, कालिदास आगे बढ़ चुका है या वे दोनों यहीं हैं शायद हम आषाढ़ के साथ चल निकले है |

~आमना 



Comments

  1. सुकून से पढ़ने वाला लेख। बहुत सुंदर👌

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  2. बहुत ही सुंदर लिखा है आपने , मन गहरे विचारों में चला गया l

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