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"हादसा"


मृत्यु से बड़ा हादसा क्या हो सकता है! मृत व्यक्ति लौट नहीं सकता और मृत व्यक्ति हमारी पुकारें नहीं सुन सकता| लेकिन अगर ज़िंदा व्यक्ति एक दिन अचानक ग़ायब हो जाये तो क्या यह बड़ा हादसा नहीं है? मृत व्यक्ति के साथ काश जुड़ जाता है और ग़ायब हुए ज़िंदा व्यक्ति के साथ क्यों के आकलन जुड़ जाते है| हम इस हादसे के उपरान्त प्रतीक्षा में बैठे-बैठे सबसे ज़्यादा विस्मित अपने धैर्य से होते हैं और निरंतर विस्मय में जीते हैं| हमें लगता है कि सब कुछ हमेशा वैसा ही रहता है जैसे शुरुआत में होता है| ऐसे हादसे हमें जीवन की अनिश्चितता याद दिलाते हैं| जीवन के क्षण ज्वार-भाटे की तरह होते हैं| हम किनारे पर खड़े होकर केवल इसके चश्मदीद गवाह बन सकते हैं|


ग़ायब हुआ व्यक्ति अपने पीछे ग़ायब होने का सुराग़ भी नहीं छोड़ता हालाँकि वह अपनी छाप छोड़कर जाता है जिसमें वह गुज़रते समय के साथ फलता-फूलता है| हम घर की चौखट पर टिके हुए राह ताकते हैं| शाम होते ही, आसमान में पक्षियों का घर लौटना, हम ज़ेहन में अंकित करते हैं| कभी अस्पताल के गलियारे में मृत्यु का तांडव देखते है या फिर कभी शव के शमशान जाने के बाद का मौन सुनते है|


स्मृतियाँ सहेजना हमारा कारोबार है जिसमें कोई नफ़ा नहीं होता लेकिन सुकून की अनुभूति ज़रूर होती है और कभी-कभी नुक़्सान भी होता है| हम सब कुछ, एक अदृश्य संदूक में भरना चाहते हैं जिससे हमें लगता रहे कि जो भी हमने जिया है वो हमारे साथ है| हम सब कुछ बचा लेना चाहते हैं पर ग़ायब होने वाले हादसों से ख़ुद को नहीं बचा पाते हैं| क्यों का आकलन करते-करते एक दिन हम मृत हो जाते हैं अंततः मृत व्यक्ति लौट नहीं सकता|


~आमना 

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