कभी-कभी हम दूर निकल जाना चाहते हैं - बहुत दूर| जहाँ से लौटने की जल्दी न रहें| जहाँ घड़ी की टिक-टिक सुनाई न देती हो| ज़िंदा होना भ्रम न लगे| भागते हुए पांवों की आवाज़ धड़कने न दबा दें| किसी को कुचल कर कहीं न पहुँचना पड़े| एक समय पर दो चीज़ों के बीच में चुनाव न करना पड़े| किसी के रोकने पर हम रुक सकें| किसी को पुकारते समय, गला सूखने न लगे| प्रेम में रो सकें और वियोग में हँस सकें| घरों से निकले लेकिन घरों में रह जाएँ| उलझे हुए धागों को मिलकर सुलझा सकें| दुनिया घर जैसी लगे| 'वसुधैव कुटुंबकम' के नारें हर गली, मोहल्ले में आपस में बात करते, रंगे हाथों पकड़े जाएँ|
हम सोचते हैं कि दूर निकलने पर हम कुछ चीज़ों के क़रीब पहुँच जायेंगे| क्षण भर के लिए हम खुश हो जाते हैं; लेकिन फिर हमारे अगर-मगर के संवाद शुरू होते हैं जिससे आमना-सामना करने से बेहतर है कि दूर निकल जाने के विचार को त्याग दिया जाए| हमें लगता है कि दूर निकल जाने से, हम बच निकलेंगे तात्कालिक मुठभेड़ से| हालाँकि हर दिन हम किसी न किसी जानी-पहचानी जगह से निकल कर, किसी अनजान जगह पहुँच रहें हैं; बहुत कुछ छूट रहा है लेकिन बहुत दूर जाने की लालसा हर दिन बढ़ रही है|
हम जानते हैं, बहुत दूर की दुनिया मायाजाल है| बहुत दूर, बहुत क़रीब की चीज़ों की बलि मांगता है| वास्तव में इतनी दूर कूच करना, असंभव है| हाँ! कुछ चीज़ें असंभव भी होती हैं| यहीं रहते हुए, केवल उतनी दूर निकल जाने की कल्पना करना ही संभव है|
~आमना
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