मैं उस क्षण में प्राण छोड़ना चाहती हूँ, जिस क्षण घर लौटना दिनचर्या का हिस्सा होने के बजाय, एक सपना बन जाता है। वह क्षण आकर गुज़र गया, घर लौटना एक सपना हो गया; मैं प्राण नहीं छोड़ सकीं क्योंकि उस क्षण ने अपने घटित होने को अज्ञात रखा। मेरा जीवन बच गया, मैं बच गई और घर में देखे गए सपने सहानुभूति देने के लिए बगल में खड़े रह गए। घर लौटने का सपना इतना आम है कि हम सब भी मिलकर घर लौटना चाहें तो भी घर लौट नहीं सकते, घर खोज नहीं सकते और घर का दफ़्न इतिहास खोद नहीं सकते। सिसकते हुए, दौड़ते हुए, आँखें मूंदकर और आँखें खोलकर, हम अब किसी भी तरह से घर नहीं लौट सकते। एक झूठी मान्यता, जिसने सदियों से अपने आप को सच स्थापित कर लिया है| हम उस सच को आत्मसात करते हुए, आगे बढ़ गए कि एक उम्र के बाद घर छूट जाता है और बची हुई उम्र में हमें ख़ुद घर बनना पड़ता है। शायद हम घर कभी नहीं हो सकते, लेकिन मानचित्र पर छूट चुका घर बार-बार घर के छायाचित्र में उगता है, किसी सूरज की तरह। सूरज का उगना आशा का प्रतीक है, शायद घर लौटने का भी। घर की स्मृतियाँ ही हमें घर की निरंतर कमी महसूस कराती है।मकानों में घुसते हुए, थका-...