Skip to main content

Posts

Showing posts from April, 2025

"ज़िन्दगी की साज़िश"

  एक उम्र के बाद, हर नज़दीक आती हुई चीज़ों से डर लगना शुरू हो जाता है। हम तहक़ीक़ करने लगते हैं — उनके ठहराव का और अपनी गतिशीलता का। अगर इन दोनों का मिलन हुआ तो क्या सिर्फ़ नुक़्सान होगा या फिर थोड़ा-बहुत नफ़ा भी रहेगा। ज़रूरी नहीं कि बाल सफ़ेद होने पर और माथे पर लकीरें उभरने पर ही इंसान को, फूँक-फूँक कर क़दम रखने का शुऊ'र हासिल होता है। बाज़-औक़ात ज़िन्दगी उम्र के पैमाने से उठकर, हसीन तोहफ़े देती है। दिल सँवारने से ज़्यादा, दिल तोड़ती है। इंसान बचाये रखना चाहता है अपने टूटे हुए दिल को, और टूटने से। दिल का टूटना किसी ख़ास उम्र के मुक़द्दर में नहीं लिखा होता। एक दिल ही तो है जिसके टूटने पर आवाज़ नहीं होती, लेकिन शोर होता है और इंसान उसमें पनपता है और फिर कहीं जाके उसे अपने संगीत की लय मिलती है।     ज़िन्दगी की चाल में कभी-कभी लोग हाल-चाल पूछने के लिए रुकते है तो शुरू में समझ में नहीं आता कि अपने हाल को कैसे शब्दों में ढाला जाये और जब तक वाक्य बनता है तब तक लोग आगे बढ़ जाते हैं। लोगों की आवाजाही लगातार होती रहती है लेकिन कुछ लोग अलग होते हैं। वे रुक जाते है कुछ देर ही ...