लेखन का रियाज़ रोमांच से भरा तब तक होता है जब तक लगातार आप कुछ न कुछ महसूस कर रहे हों, अपनी आसपास में घटती घटनाओं के चलते| लेकिन फिर किसी बड़ी घटना के घटते, आप छोटी-मोटी घटनाओं के लिए दरवाज़े बंद कर देते हैं फलस्वरूप आप का महसूस करना शून्य हो जाता है और लेखन भी उबाऊ लगने लगता है| बीते महीने निरंतर लिखने के बाद, निरंतर लिखने की कोशिश अब तक जारी है पर अब काग़ज़ और कलम के बीच समन्वय नहीं बैठ पा रहा है| बड़ी घटना ने छोटी घटनाओं को लात मर दी है| कोई अपने अपमान का बदला लेने तक नहीं आ रहा है| दरवाज़ा खोलने पर भी कोई दस्तक देते नहीं दिख रहा| लेखन जहाँ से उपजता है वह ज़मीन बंजर मालूम पड़ती है| दरवाज़े को खोलने और बंद करने पर चर-चर की आवाज़ निरंतर आ रही है| जहाँ तक आँखें देख सकती हैं और कान सुन सकते हैं, वहाँ तक निरंतर मैं देख और सुन रही हूँ; लेकिन ऐसा कुछ नहीं, दिखाई और सुनाई दे रहा है जिसकी मदद से लेखन की बंजर ज़मीन को उपजाऊ किया जा सके| यह जो घट रहा है इसके बारे में, तब मैंने निरंतर सोचा था लेकिन अब निरंतर जी रही हूँ| चंद घंटों में, मैं जो कुछ लिख सकती हूँ शायद उसे बोलने में मेरा जीव...