लेखन का रियाज़ रोमांच से भरा तब तक होता है जब तक लगातार आप कुछ न कुछ महसूस कर रहे हों, अपनी आसपास में घटती घटनाओं के चलते| लेकिन फिर किसी बड़ी घटना के घटते, आप छोटी-मोटी घटनाओं के लिए दरवाज़े बंद कर देते हैं फलस्वरूप आप का महसूस करना शून्य हो जाता है और लेखन भी उबाऊ लगने लगता है| बीते महीने निरंतर लिखने के बाद, निरंतर लिखने की कोशिश अब तक जारी है पर अब काग़ज़ और कलम के बीच समन्वय नहीं बैठ पा रहा है| बड़ी घटना ने छोटी घटनाओं को लात मर दी है| कोई अपने अपमान का बदला लेने तक नहीं आ रहा है| दरवाज़ा खोलने पर भी कोई दस्तक देते नहीं दिख रहा| लेखन जहाँ से उपजता है वह ज़मीन बंजर मालूम पड़ती है| दरवाज़े को खोलने और बंद करने पर चर-चर की आवाज़ निरंतर आ रही है| जहाँ तक आँखें देख सकती हैं और कान सुन सकते हैं, वहाँ तक निरंतर मैं देख और सुन रही हूँ; लेकिन ऐसा कुछ नहीं, दिखाई और सुनाई दे रहा है जिसकी मदद से लेखन की बंजर ज़मीन को उपजाऊ किया जा सके| यह जो घट रहा है इसके बारे में, तब मैंने निरंतर सोचा था लेकिन अब निरंतर जी रही हूँ| चंद घंटों में, मैं जो कुछ लिख सकती हूँ शायद उसे बोलने में मेरा जीव...
दिन फिर से फिसलने शुरू हो गए है। आँखें पुराना कैलेंडर तलाश कर रहीं हैं। सूरज की किरणें पुराने एहसासत को तारो-ताज़ा कर रहीं हैं| सारे काश हाशिये पर खड़े दिख रहें हैं। नया हमारे सामने है लेकिन हम पुराना खोज रहे हैं| लगातार बेतरतीब सा महसूस हो रहा है| कोई तरकीब नहीं सूझ रही कि अपने बदन पर चिपके पुराने ख़यालों को कैसे झाड़ा जाये? इस पल में कैसे पुराने ख़ुद से छुटकारा पाया जाये? नए साल में कैसे ख़ुद को नए रंग-ढंग में ढाया जाये? पुरानी चीज़ों पर तो अक्सर दीमक लग जाती है| नए दीपक से कैसे उजाला किया जाये? माँ द्वारा सिखाई गयी प्रेम की परिभाषा के सहारे, मैंने कितना कुछ सरलता से जाना है| पिता ने वियोग से लड़ना नहीं सिखाया परन्तु वियोग में जीना बतलाया| माँ-पिता का पुराना होना, हर नए साल पर कितनी पुरानी यादों को टटोलता है| पिता का ऐनक पिता जितना पुराना है किन्तु उसमें कभी धूल नहीं जमी और न ही माँ की शाल से धागे निकले| पिता अब कम बाहर जाते हैं और माँ के जोड़ों में दर्द रहता है| दोनों घंटों चुपचाप धूप में बैठते हैं और अपने लगाए पौधों को निहारते हैं| एक दिन अचानक सब कुछ पुराना नज़र आने लगता है| नया, पुराने...